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भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर गांव और परंपरा की अपनी एक अनोखी कहानी होती है। कुछ स्थान भक्ति के अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, जबकि कुछ रहस्यमय हैं। क्या आपने कभी सुना है कि एक गांव में भगवान हनुमान की पूजा करना मना है? महाराष्ट्र के अहिल्यानगर जिले में स्थित नांदूर निम्बा दैत्य नामक गांव इस रहस्य को अपने भीतर समेटे हुए है। यहां हनुमान जी की पूजा करना तो दूर, उनके नाम का उच्चारण भी अशुभ माना जाता है।
गांव का परिचय
नांदूर निम्बा दैत्य, अहिल्यानगर जिले के पाथर्डी तहसील में स्थित एक छोटा सा गांव है, जो कभी दंडकारण्य वन का हिस्सा माना जाता था। यह गांव पाथर्डी से लगभग 24 किलोमीटर और अहिल्यानगर मुख्यालय से 66 किलोमीटर दूर है। यह एक सामान्य मराठी गांव की तरह दिखता है, जिसमें मिट्टी के घर, खेत और छोटे मंदिर हैं। लेकिन इसकी धार्मिक परंपरा अद्वितीय है। यहां भगवान हनुमान की पूजा पूरी तरह से निषिद्ध है। गांव में न तो हनुमान मंदिर है, न हनुमान चालीसा का पाठ होता है, और न ही सुंदरकांड का आयोजन। गांववाले मानते हैं कि यदि कोई गलती से भी हनुमान जी की मूर्ति या झंडा लेकर आता है, तो अनहोनी घटित होती है। इस डर के कारण, पीढ़ियों से यहां हनुमान जी की पूजा नहीं की जाती।
कहानी और धार्मिक परंपरा का उद्गम
स्थानीय लोगों के अनुसार, नांदूर निम्बा दैत्य की यह अनोखी परंपरा त्रेता युग से जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार, जब रावण ने सीता माता का अपहरण किया था, तब भगवान राम और हनुमान जी उनकी खोज में निकले थे। रास्ते में हनुमान जी का सामना निंबा दैत्य नामक राक्षस से हुआ, जो उस क्षेत्र का शासक था। कहा जाता है कि निंबा दैत्य, राक्षस होते हुए भी भगवान राम का भक्त था। दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ और अंततः दोनों बेहोश हो गए। तभी निंबा दैत्य ने भगवान राम का स्मरण किया, जिससे भगवान राम प्रकट हुए। निंबा दैत्य की भक्ति देखकर श्रीराम ने उसे आशीर्वाद दिया कि इस भूमि पर केवल उसकी पूजा होगी और हनुमान जी की पूजा नहीं की जाएगी। तभी से यह स्थान 'नांदूर निम्बा दैत्य' कहलाया।
आस्था और लोकविश्वास
गांव के लोग मानते हैं कि भगवान राम ने निंबा दैत्य को गांव की रक्षा का कार्य सौंपा था, इसलिए आज भी वे उन्हें 'गांव का देवता' मानते हैं। निंबा दैत्य का मंदिर गांव के बीचोंबीच स्थित है, जहां हर साल गुड़ी पड़वा के दिन विशेष पूजा और उत्सव मनाया जाता है। यहां के लोगों के लिए यह परंपरा केवल आस्था नहीं, बल्कि उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। गांव में हनुमान जी से जुड़ी कोई भी चीज लाना या उनका नाम लेना अशुभ माना जाता है। एक उदाहरण के तौर पर, गांव के डॉक्टर सुभाष देशमुख ने जब 'मारुति 800' कार खरीदी, तो उनके क्लिनिक में मरीज आना बंद हो गए। लेकिन जब उन्होंने वह कार बेच दी, सब कुछ सामान्य हो गया। इस तरह की घटनाओं के कारण लोग इस परंपरा का पालन पूरी श्रद्धा से करते हैं।
सामाजिक नियम और परंपराएं
नांदूर निम्बा दैत्य गांव में न केवल हनुमान जी की पूजा पर रोक है, बल्कि यहां हनुमान, मारुति या अंजनी जैसे नाम रखना भी वर्जित है। जब गांव में कोई बच्चा जन्म लेता है, तो परिवार इस बात का ध्यान रखता है कि उसका नाम किसी भी तरह से हनुमान जी से जुड़ा न हो। यहां तक कि घरों, दुकानों या मंदिरों में हनुमान जी की तस्वीर, मूर्ति या कैलेंडर भी नहीं रखा जाता। यह परंपरा गांव के लोगों के लिए आस्था और विश्वास का विषय है। दिलचस्प बात यह है कि इस गांव के कई लोग सेना और सरकारी सेवाओं में कार्यरत हैं, लेकिन वे इस धार्मिक परंपरा को अपने गांव की पहचान और गर्व का प्रतीक मानते हैं।
आधुनिक युग में यह परंपरा
आज जब अधिकांश गांव और शहर आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं, तब भी नांदूर निम्बा दैत्य गांव अपनी पुरानी परंपरा पर अडिग है। यह स्थान लोगों के लिए आस्था, लोककथा और अंधविश्वास का संगम है। आधुनिक शिक्षा और तकनीक के बावजूद, गांव के लोग इस परंपरा को भगवान राम के आशीर्वाद के रूप में मानते हैं। उनका विश्वास है कि निंबा दैत्य ही उनके गांव का सच्चा रक्षक है, जो हर बुराई और संकट से उनकी रक्षा करता है।
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